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DISCRIPTIONपत्र वृक्ष का

कितना अच्छा होता न जब पेड़ – पौधे भी बोल पाते l वसंत की बहार एवं खुशियों को गाकर हमें सुनाते और पतझड़ के दर्द को बयाँ करते l हम भी उनकी खुशियों में शामिल होते और उनके दर्द को सुनकर सहानुभूति प्रकट करते l तब शायद मनुष्य इतना स्वार्थी नहीं होता और अपनी सुविधा के लिए पेड़ पौधों का भक्षक न बनता l
काश ! ऐसा हो पाता….ज़रा कल्पना कीजिए कि वृक्ष अपनी आपबीती बताने के लिए मनुष्य के नाम एक पत्र लिखता है l इस पत्र में वृक्ष अपनी वो हर बात बयाँ करता है जो उसपर बीत रही हैl आइए पढ़ते हैं कि वृक्ष का पत्र देशवासियों के नाम…..

प्यारे देशवासियों !

मैं आपका अभिनंदन करूँ, आपको आशीर्वाद दूँ ,आपकी प्रार्थना करूँ , विनती करूँ या आपका तिरस्कार करूँ l चलिए जाने दीजिए इसका फैसला परमपिता परमेश्वर पर छोड़ देते हैं l
पत्र प्रारंभ करने से पहले मैं अपना परिचय देना चाहता हूँ l सृष्टि की अनुपम कृति, इस धरा का श्रृंगार , मनुष्य के प्राणवायु का स्रोत , सूर्य की तपन से शीतलता प्रदान करने वाला , मूसलाधार वर्षा से भू-रक्षण करने वाला धरती माँ का बेटा- एक वृक्ष हूँ ; सघन परिवार का एक छोटा सा सदस्य l मैं अपने पूरे परिवार की ओर से आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आप मेरे महत्त्व को समझें , मेरी पीड़ा को सुने, मेरे दर्द को महसूस करें एवं मेरी खुशियों का ख्याल रखें l उम्मीद करता हूँ कि आपसब मेरी बात अवश्य सुनेंगे l
कहते हैं कि एकता में बल है l परिवार के सदस्य मिलजुलकर रहें तो कठिन से कठिन समस्या का समाधान असानी से हो जाता है l मेरे परिवार में मेरे जैसे अनेक सदस्य मिलजुलकर रहते हैं l शेर, चीता , बाघ, भालू, हिरन, भालू, हाथी इत्यादि प्राणियों के लिए तो वन घर है इसलिए तो इन्हें वन्य प्राणी कहते हैं l हमसब मिलकर न सिर्फ इनका संरक्षण करते हैं बल्कि इन्हें विपदाओं से बचाते भी हैं l अब आपको लग रहा होगा कि हम आपके काम आते भी हैं या नहीं l हम आपके लिए कितने उपयोगी हैं इस बात की कल्पना करकर ही आप रोमांचित हो उठेंगे l हम दूषित वायु ग्रहण कर आपको प्राणवायु देते हैं, हमारे सभी सदस्य मिलकर बरसात के दिनों में मिट्टी के कटाव को रोकते हैं जिससे मिटटी की उर्वरा शक्ति कायम रहती है , वह उपजाऊ बनी रहती है और उपजने वाले अन्न का उपभोग करके आपका जीवन चलता है l प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद ने हम में से प्राप्त जड़ी बूटियों द्वारा ऐसी –ऐसी औषधियों का निर्माण किया है जो भयानक से भयानक रोगों से मुक्ति दिला सकता है l हमारी लकड़ियों का उपयोग इंधन से लेकर भवन निर्माण तक में होता है l हमारी उपयोगिता का अनुमान तो अपने लगा ही लिया होगा l
इस धरा में जब आपका अस्तित्व नहीं था तब हमारी संख्या असंख्य थी l मनुष्य की उत्पत्ति होने पर भी हम प्रसन्न ही थे क्योंकि हम आपके काम आ सकते थे, पर हमें क्या मालूम था कि आपकी उत्पत्ति हमारे विनाश का कारण बन जाएगी l जैसे- जैसे धरा पर आपका परिवार बढ़ता गया वैसे-वैसे हमारा परिवार घटता गया l वन्य प्राणी लुप्त होते जा रहे हैं l आप अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारकर प्रसन्न हो रहे हैं ; आपकी इस नासमझी के कारण प्राकृतिक सम्पदा विनाश के कगार पर पहुँच गई है और मेरे ह्रदय से एक ही आवाज़ आ रही है –

“पथरीले रास्ते हुए , कंक्रीट के वन, कहाँ खो गया आदमी , पूछे मेरा मन l”
पर्यावरण संरक्षण आज विश्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है l बेशुमार बढ़ती जनसंख्या एवं भौतिकता की अंधी दौड़ स्तिथियाँ और भी विषम कर दी हैं l नैतिकता को तिलांजलि देकर भौतिक संपन्नता को लोगों ने सब कुछ मान लिया है l हरे भरे वृक्षों को लगातार काटा जा रहा है, पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ने से ‘भूमंडलीय उष्मीकरण ‘ बढ़ता ही जा रहा है l बहुत पहले प्रकृति पूजा को महत्त्व देकर आपके पूर्वजों ने अपने वर्तमान को तो सुंदर बनाया ही था , अपनी भावी पीढ़ी को भी सुंदर एवं समृद्ध धरा सौंपी थी l सूर्य, जल, वायु, प्रकाश एवं पृथ्वी की आराधना की जाती थी ;इन सबको देवता एवं शक्ति मानकर इनका संरक्षण किया जाता था l पर आज या हमारे लिए आराध्य न होकर उपभोग की वस्तु बनकर रह गए हैं l
प्रदूषण की समस्या ने पूरे विश्व को झकझोर दिया है l मैं आज दर्द से तड़प रहा हूँ l आपसब ने मिलकर मेरी मान क्या अपनी माँ को लहुलूहान कर दिया है l जब आप एक-एक करके मेरे परिवार के सदस्यों को क्षत –विक्षत करते हैं तब धरती माँ का सीना छलनी हो जाता है l जब आप अपने लिए मकान बनाते हैं तब वही हमारे लिए शमशान बन जाता है l जब आप कारखाने बनाते हैं तो वही हमारे लिए काल बन जाता है l
आप यह क्यों नहीं समझते कि यदि हम नहीं रहेंगे तो आपका भी अस्तित्व धीरे – धीरे समाप्त हो जाएगा l हमारी रक्षा का दायित्व ‘राष्ट्रीय वन विभाग ‘ के सदस्यों तक सीमित न होकर आम आदमी का भी होना चाहिए क्योंकि जीवन पर सबका अधिकार है l आपसब प्रण कीजिए कि हर देशवासी वर्ष में दस –दस वृक्ष (पौधे) लगाएगा एवं उसे संरक्षण प्रदान करेगा l आप यकीन मानिए कि तब जंगल का वर्चस्व बना रहेगा , कहीं अकाल नहीं पड़ेगा, पृथ्वी आग नहीं उगलेगी, न अतिवृष्टि होगी न अनावृष्टि , भूमि बंजर होने से बच जाएगी एवं चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ छा जाएगी l चलते-चलते मैं यही कहना चाहता हूँ –
“विकास की अंधी दौड़ में दूर अपना वहम करें
दो –चार वृक्ष लगाकर धरती माँ पर रहम करें l”

अंत में मैं आपसे अपने जीवन की प्रार्थना करता हूँ एवं आपके जीवन की कामना करता हूँ l

धन्यवाद !

आपका जीवन रक्षक
एक वृक्ष
– मिथिलेश पाठक
हिंदी विभाग प्रमुख जैन इंटरनेशनल स्कूल, नागपुर